वार्षिक प्रतियोगिता कविता 4:- विश्वास
वार्षिक प्रतियोगिता
कविता: 4:- विश्वास:-
जितना सरल है जंग जीतना,
इसे जीतना उससे कठिन है।
एक बार जो यह टूट जाए,
फिर से जुड़ना बहुत कठिन है।
अपनों के बीच की है पक्की डोर,
फिर चाहे सांझ हो चाहे भोर।
जब यह पास होता है,
हम कभी नहीं होते बोर।
ना ही हमें होता किसी का भय,
यह बना देता है सबको निर्भय।
इसका रिश्तों में जब होता आभास,
तभी बढ़ता है सब में विश्वास।
सभी चाहते हैं इसकी बस्ती हो,
हर आंगन और हर आवास।
Swati chourasia
05-Mar-2022 05:34 PM
Very nice
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Swati Sharma
06-Mar-2022 09:14 PM
Thank you
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Niraj Pandey
05-Mar-2022 12:06 AM
बहुत खूब
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Swati Sharma
06-Mar-2022 09:14 PM
धन्यवाद
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Arshi khan
04-Mar-2022 11:50 PM
Nice
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Swati Sharma
06-Mar-2022 09:14 PM
Thanks
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